03-11-92  ओम शान्ति    अव्यक्त बापदादा    मधुबन

रूहानी रॉयल्टी की निशानी- सदा भरपूर-सम्पन्न वा तृप्त

सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाली रॉयल आत्माओं प्रति अव्यक्त बापदादा बोले -

आज बापदादा चारों ओर के अपने रूहानी रॉयल फैमिली को देख रहे हैं। सारे कल्प में सबसे रॉयल आप आत्मायें ही हो। वैसे हद के राज्य-अधिकारी रॉयल फैमिली बहुत गाये हुए हैं। लेकिन रूहानी रॉयल फैमिली सिर्फ आप ही गाये हुए हो। आप रॉयल फैमिली की आत्मायें आदि काल में भी और अनादि काल में भी और वर्तमान संगमयुग में भी रूहानी रॉयल्टी वाली हो। अनादि काल स्वीट होम में भी आप विशेष आत्माओं की रूहानियत की झलक, चमक सर्व आत्माओं से श्रेष्ठ है। आत्मायें सभी चमकती हुई ज्योति-स्वरूप हैं, फिर भी आपकी रूहानी रॉयल्टी की चमक अलौकिक है। जैसे साकारी दुनिया में आकाश बीच सितारे सब चमकते हुए दिखाई देते हैं, लेकिन कोई विशेष चमकने वाले सितारे स्वत: ही अपनी तरफ आकर्षित करते हैं, लाइट होते हुए भी उन्हों की लाइट विशेष चमकती हुई दिखाई देती है। ऐसे अनादि काल परमधाम में भी आप रूहानी सितारों की चमक अर्थात् रूहानी रॉयल्टी की झलक विशेष अनुभव होती है। इसी प्रकार आदि काल सतयुग अर्थात् स्वर्ग में आप आत्मायें विश्व-राज्य की रॉयल फैमिली के अधिकारी बनते हो। हर एक राजा की रॉयल फैमिली होती है।

लेकिन आप आत्माओं की रॉयल फैमिली की रॉयल्टी वा देव-आत्माओं की रॉयल्टी सारे कल्प में और किसी रॉयल फैमिली की हो नहीं सकती। इतनी श्रेष्ठ रॉयल्टी चैतन्य स्वरूप में प्राप्त की है जो आपके जड़ चित्रों की भी कितनी रॉयल्टी से पूजा होती है। सारे कल्प के अन्दर रॉयल्टी की विधि प्रमाण और कोई भी धर्म-पिता, धर्म-आत्मा या महान आत्मा की ऐसे पूजा नहीं होती। तो सोचो-जब जड़ चित्रों में भी रॉयल्टी की पूजा है तो चैतन्य में कितने रॉयल फैमिली के बनते हो! तो इतने रॉयल हो? वा बन रहे हो? अभी संगम पर भी रूहानी रॉयल्टी अर्थात् फरिश्ता-स्वरूप बनते हो, रूहानी बाप की रूहानी रॉयल फैमिली बनते हो। तो अनादि काल, आदि काल और संगमयुगी काल-तीनों काल में नम्बरवन रॉयल बनते हो। ये नशा रहता है कि हम तीनों काल में भी रूहानी रॉयल्टी वाली आत्मायें हैं?

इस रूहानी रॉयल्टी का फाउन्डेशन क्या है? सम्पूर्ण प्योरिटी। सम्पूर्ण प्योरिटी ही रॉयल्टी है। तो अपने से पूछो कि रूहानी रॉयल्टी की झलक आपके रूप से सबको अनुभव होती है? रूहानी रॉयल्टी की फलक हर चरित्र से अनुभव होती है? लौकिक दुनिया में भी अल्पकाल की रॉयल्टी न जानते हुए भी चेहरे से, चलन से अनुभव होती है। तो रूहानी रॉयल्टी गुप्त नहीं रह सकती, वो भी दिखाई देती है। तो हर एक नॉलेज के दर्पण में अपने को देखो कि मेरे चेहरे पर, चलन में रॉयल्टी दिखाई देती है वा साधारण चेहरा, साधारण चलन दिखाई देती है? जैसे सच्चा हीरा अपनी चमक से कहाँ भी छिप नहीं सकता, ऐसे रूहानी चमक वाले, रूहानी रॉयल्टी वाले छिप नहीं सकते।

कई बच्चे अपने को खुश करने के लिए सोचते हैं और कहते भी हैं कि-’’हम गुप्त आत्मायें हैं, इसलिए हमको कोई पहचानता नहीं है। समय आने पर आपेही मालूम पड़ जायेगा।’’ गुप्त पुरूषार्थ बहुत अच्छी बात है। लेकिन गुप्त पुरुषार्थी की झलक और फलक वा रूहानी रॉयल्टी की चमक औरों को अनुभव जरूर करायेगी। स्वयं, स्वयं को चाहे कितना भी गुप्त रखें लेकिन उनके बोल, उनका सम्बन्ध-सम्पर्क, रूहानी व्यवहार का प्रभाव उनको प्रत्यक्ष करता है। जिसको साधारण शब्दों में दुनिया वाले बोल और चाल कहते हैं। तो स्वयं, स्वयं को प्रत्यक्ष नहीं करते, गुप्त रखते-यह निर्माणता की विशेषता है। लेकिन दूसरे उनके बोल-चाल से अनुभव अवश्य वरेंगे। दूसरे कहें कि यह गुप्त पुरुषार्थी है। अगर स्वयं को कहते हैं कि मैं गुप्त पुरुषार्थी हूँ-तो यह गुप्त रखा या प्रत्यक्ष किया? कह रहे हो गुप्त लेकिन बोल रहे हो कि मैं गुप्त पुरुषार्थी हूँ! यह गुप्त हुआ? बहुत पत्र में भी लिखते हैं कि हम गुप्त पुरूषार्थियों को निमित्त बनी हुई दादियां नहीं जानती हैं। फिर यह भी लिखते हैं कि-देख लेना आगे हम क्या करते, क्या होता है-तो यह गुप्त रहे या प्रत्यक्ष किया? गुप्त पुरुषार्थी अपने को गुप्त रखें-यह बहुत अच्छा। लेकिन वर्णन नहीं करो, दूसरा आपको बोले। जो अपने आपको ही कहें उनको क्या कहा जाता है? (मियां मिट्ठू ) तो मियां मिट्ठू  बनना बहुत सहज है ना!

तो क्या सुना? रूहानी रॉयल्टी। रॉयल आत्मायें सदा ही एक तो भरपूर-सम्पन्न रहती हैं और सम्पन्नता की निशानी-वे सदा तृप्त आत्मा रहती हैं। तृप्त आत्मा हर परिस्थिति में, हर आत्माओं के सम्बन्ध-सम्पर्क में आते हुए, जानते हुए सन्तुष्ट रहती है। चाहे कोई कितना भी असन्तुष्ट करने की परिस्थितियां उनके आगे लाये लेकिन सम्पन्न, तृप्त आत्मा असन्तुष्ट करने वाले को भी सन्तुष्टता का गुण सहयोग के रूप में देगी। ऐसी आत्मा के प्रति रहमदिल बन शुभ भावना और शुभ कामना द्वारा उनको भी परिवर्तन करने का प्रयत्न करेंगे। रूहानी रॉयल आत्माओं का यही श्रेष्ठ कर्म है। जैसे स्थूल रॉयल आत्मायें कभी भी छोटी-छोटी बातों में, छोटी-छोटी चीजों में अपनी बुद्धि वा समय नहीं देतीं, देखते भी नहीं देखतीं, सुनते भी नहीं सुनतीं। ऐसे रूहानी रॉयल आत्मा किसी भी आत्मा की छोटी-छोटी बातों में, जो रॉयल नहीं हैं-उनमें अपनी बुद्धि वा समय नहीं देगी। दुनिया वाले कहते हैं कि रॉयल्टी अर्थात् किसी भी हल्की बात में आंख नहीं डूबती। रूहानी रॉयल आत्माओं के मुख से कभी व्यर्थ वा साधारण बोल नहीं निकलेंगे, हर बोल युक्तियुक्त होगा। युक्तियुक्त का अर्थ है-व्यर्थ भाव से परे अव्यक्त भाव, अव्यक्त भावना। इसको कहा जाता है रॉयल्टी।

इस समय की रॉयल्टी भविष्य की रॉयल फैमिली में आने के अधिकारी बनाती है। तो चेक करो-वृत्ति रॉयल है? वृत्ति रॉयल अर्थात् सदा शुभ भावना, शुभ कामना की वृत्ति से हर एक आत्मा से व्यवहार में आये। रॉयल दृष्टि अर्थात् सदा फरिश्ता रूप से औरों को भी फरिश्ता रूप देखे। कृति अर्थात् कर्म में सदा सुख देना, सुख लेना-इस श्रेष्ठ कर्म के प्रमाण सम्पर्क में आये। ऐसे रॉयल बने हो? कि बनना है? ब्रह्मा बाप के बोल और चाल, चेहरे और चलन की रॉयल्टी को देखा। ऐसे फॉलो ब्रह्मा बाप। साकार को फॉलो करना तो सहज है ना! ब्रह्मा को फॉलो किया तो शिव बाप को फॉलो हो ही जायेगा। एक को तो फॉलो कर सकते हो ना। बाप समान बनने के प्वाइंट्स तो रोज़ सुनते हो! सुनना अर्थात् फॉलो करना। कॉपी करना तो सहज होता है ना। कि कॉपी करना भी नहीं आता?

बापदादा आज मुस्करा रहे थे कि मधुबन में आते हैं तो विशेष गुरूवार के दिन क्या करते हैं? एक तो भोग लगाते हैं। और क्या करते हैं जो सिर्फ मधुबन में ही करते हैं? जीते-जी मरने का भोग। आप सबने जीते-जी मरने का भोग लगा लिया है? बापदादा मुस्करा रहे थे कि ‘जीते-जी मरना’ कहकर मनाना तो सहज है-स्टेज पर बैठ गये, तिलक लगा लिया, मर गये! लेकिन जीते-जी मरना अर्थात् पुराने संस्कारों से मरना। पुराने संस्कार, पुराने संसार की आकर्षण से मरना-यह है जीते जी मरना। भोग लगा दिया, भण्डारी में जमा कर दिया और जीते जी मरना हो गया-यह तो बहुत सहज है। लेकिन मर गये? बापदादा सोच रहे थे कि पुराने संसार और पुराने संस्कार-इससे सदा के लिए संकल्प और स्वप्न में भी मरना मनाना, ऐसा जीते-जी मरना कौन और कब मना-येंगे? अगर स्टेज पर बिठाते हैं तो सब के सब बैठ जाते हैं। स्टेज पर बैठना-यह तो कॉमन (आम) बात है। लेकिन बुद्धि को बिठाना-इसको कहा जाता है यथार्थ जीते जी मरना मनाना। जब मर गये, मरना अर्थात् परिवर्तन होना। तो ऐसा जीते जी मरना, उसके लिए कितने तैयार होंगे? कि सेन्टर पर जाकर के कहेंगे कि क्या करें, चाहते नहीं थे लेकिन हो गया? यहाँ तो जीते जी मरना मनाकर जाते हैं, फिर जब कोई बात सामने आती है तो जिंदा हो जाते हो। ऐसे नहीं करना।

यादगार में भी दिखाते हैं कि रावण का एक सिर खत्म करते थे तो दूसरा आ जाता था। यहाँ भी एक बात पूरी होती तो दूसरी पैदा हो जाती, फिर समझते-हमने तो रावण को मार दिया, फिर यह कहाँ से आ गया? लेकिन मूल फाउन्डेशन को समाप्त न करने के कारण एक रूप बदल दूसरे रूप में आ जाते हैं। फाउन्डेशन को खत्म कर दो तो रूप बदलकर के माया वार नहीं करेगी, सदा के लिए विदाई ले जायेगी। समझा, क्या बनना है? रूहानी रॉयल्टी वाले। सदैव यह चेक करो कि हर कर्म रूहानी रॉयल परिवार के प्रमाण है? जब 99%  बोल, कर्म और संकल्प रॉयल्टी के हों तब समझो भविष्य में भी रॉयल फैमिली में आयेंगे। ऐसे नहीं सोचना-हम तो आ ही जायेंगे। चलो, सम्पन्न नहीं बने हैं तो एक परसेन्ट (1% ) फ्री देते हैं। लेकिन 99%  रॉयल्टी के संस्कार, बोल और संकल्प नेचुरल होने चाहिए। बार-बार युद्ध नहीं करनी पड़े, नेचुरल संस्कार हो जाए। अच्छा!

चारों ओर के रूहानी रॉयल्टी वाली रॉयल आत्माओं को, सदा प्योरिटी द्वारा रॉयल्टी अनुभव कराने वाली आत्माओं को, सदा परिश्ता स्वरूप के संस्कार को प्रैक्टिकल में लाने वाली आत्माओं को, सदा ब्रह्मा बाप को फॉलो करने वाली आत्माओं को, सदा श्रेष्ठ ब्राह्मण संसार में ब्राह्मण संस्कार अनुभव करने वाले रूहानी रॉयल परिवार को बापदादा का याद, प्यार और नमस्ते।

अव्यक्त बापदादा की पर्सनल मुलाकात

ग्रुप नं. 1

सेवा में बिजी रहो तो सहज मायाजीत बन जायेंगे

सदा अपनी शक्तिशाली वृत्ति से वायुमण्डल को परिवर्तन करने वाली विश्व-परिवर्तक आत्माए हो ना। इस ब्राह्मण जीवन का विशेष ऑक्यूपेशन क्या है? अपनी वृत्ति से, वाणी से और कर्म से विश्व-परिवर्तन करना। ऐसे सम्पन्न बन गये या विनाश तक बनेंगे? अगर समय सम्पन्न वा सम्पूर्ण बनाये तो रचना पावरफुल हुई या रचता? तो समय पर नहीं बनना है, समय को समीप लाना है। समय का इन्तज़ार करने वाले नहीं हो। जब पा लिया तो पाने की खुशी में रहने वाले सदा ही एवररेडी रहते हैं। कल भी विनाश हो जाये तो तैयार हो? या थोड़ा टाइम चाहिए? एवररेडी, नष्टोमोहा, स्मृतिस्वरूप-इसमें पास हो? एवररेडी का अर्थ ही है-नष्टोमोहा स्मृतिस्वरूप। या उस समय याद आयेगा कि पता नहीं बच्चे क्या कर रहे होंगे, कहाँ होंगे, छोटे-छोटे पोत्रों का क्या होगा? यहीं विनाश हो जाये तो याद आयेंगे? पति का भी कल्याण हो जाये, पोत्रे का भी कल्याण हो जाये, उन्हों को भी यहाँ ले आयें-याद आयेगा? बिजनेस का क्या होगा, पैसे कहाँ जायेंगे? रास्ते टूट जायें फिर क्या करेंगे? देखना, अचानक पेपर होगा।

सदा न्यारा और प्यारा रहना-यही बाप समान बनना है। जहाँ हैं, जैसे हैं लेकिन न्यारे हैं। यह न्यारापन बाप के प्यार का अनुभव कराता है। जरा भी अपने में या और किसी में भी लगाव न्यारा बनने नहीं देगा। न्यारे और प्यारेपन का अभ्यास नम्बर आगे बढ़ायेगा। इसका सहज पुरूषार्थ है निमित्त भाव। निमित्त समझने से निमित्त बनाने वाला याद आता है। मेरा परिवार है, मेरा काम है। नहीं, मैं निमित्त हूँ। निमित्त समझने से पेपर में पास हो जायेंगे। तो सभी ऐसी सेवा करते हो? या टाइम नहीं मिलता है? वाणी के लिए समय नहीं है तो वृत्ति से, मन्सा-सेवा से परिवर्तन करने का समय तो है ना। सेवाधारी आत्माए सेवा के बिना रह नहीं सकतीं। ब्राह्मण जन्म है ही सेवा के लिए। और जितना सेवा में बिजी रहेंगे उतना ही सहज मायाजीत बनेंगे। तो सेवा का फल भी मिल जाये और मायाजीत भी सहज बन जायें-डबल फायदा है ना। जरा भी बुद्धि को फुर्सत मिले तो सेवा में जुट जाओ। वैसे भी पंजाब-हरियाणा में सेवा-भाव ज्यादा है। गुरूद्वारों में जाकर सेवा करते हैं ना। वह है स्थूल सेवा और यह है रूहानी सेवा। सेवा के सिवाए समय गँवाना नहीं है। निरन्तर योगी, निरन्तर सेवाधारी बनो-चाहे संकल्प से करो, चाहे वाणी से, चाहे कर्म से। अपने सम्पर्क से भी सेवा कर सकते हो। चलो, मन्सा-सेवा करना नहीं आवे लेकिन अपने सम्पर्क से, अपनी चलन से भी सेवा कर सकते हो। यह तो सहज है ना। तो चेक करो कि सदा सेवाधारी हैं वा कभी-कभी के सेवाधारी हैं? अगर कभी-कभी के सेवाधारी होंगे तो राज्य-भाग्य भी कभी-कभी मिलेगा। इस समय की सेवा भविष्य प्राप्ति का आधार है। कभी भी कोई यह बहाना नहीं दे सकते कि चाहते थे लेकिन समय नहीं है। कोई कहते हैं-शरीर नहीं चलता है, टांगें नहीं चलती हैं, क्या करें? कोई कहती हैं-कमर नहीं चलती, कोई कहती हैं-टांगे नहीं चलती। लेकिन बुद्धि तो चलती है ना! तो बुद्धि द्वारा सेवा करो। आराम से पलंग पर बैठकर सेवा करो। अगर कमर टेढ़ी है तो लेट जाओ लेकिन सेवा में बिजी रहो।

बिजी रहना ही सहज पुरूषार्थ है। मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। बार-बार माया आवे और भगाओ-तो मेहनत होती है, युद्ध होती है। बिजी रहने वाले युद्ध से छूट जाते हैं। बिजी रहेंगे तो माया की हिम्मत नहीं होगी आने की। और जितना अपने को बिजी रखेंगे उतना ही आपकी वृत्ति से वायुमण्डल परिवर्तन होता रहेगा। कोई भी ब्राह्मण आत्मा यह नहीं सोच सकती कि-क्या करें, वायुमण्डल बहुत खराब है। खराब है तब तो परिवर्तन करते हो। खराब ही नहीं होगा तो क्या करेंगे? अच्छे को बदलेंगे क्या? तो विश्व-परिवर्तक का काम है-बुरे को अच्छा बनाना। तो बुरा तो होगा ही, बुरे को अच्छा बनाने वाले आप हो! विश्व-परिवर्तन का कार्य किया है, तब तो अब तक भी आपका गायन है। शक्तियों के गायन में आपकी कितनी महिमा करते हैं! तो अपनी महिमा सुनते हुए खुशी होती है ना!

पाण्डवों की भी महिमा है। लक्ष्मी के साथ गणेश को जरूर रखते हैं। तो पाण्डव अपना कल्प पहले का यादगार अभी स्वयं देख रहे हैं, सुन रहे हैं। खुशी होती है ना! इतनी खुशी है जो कैसे भी दर्दनाक खेल हों लेकिन आप खुशी में नाचते रहते हो! पांव से नहीं नाचना। मन में खुशी से नाचते हैं। क्यों खुशी में नाचते हो? क्योंकि नॉलेज है-नथिंग न्यु, होना ही है। दर्दनाक बातें सुनकर कभी घबराते हो? पक्के हो? अगर आप ब्राह्मण आत्माए पक्के नहीं बनेंगे तो कौन बनेंगे? मास्टर सर्वशक्तिवान कभी घबराते नहीं हैं। जब भी कोई ऐसी परिस्थिति आवे तो पहले सोचो-मेरा साथी कौन! पाण्डवों ने कितना कुछ सहन किया लेकिन बाप का साथ होने के कारण विजयी बने। तो विजय की गारन्टी है। साथ में बाप है तो विजयी बनने की गारन्टी है। इसिलए कभी भी किसी बात में भी कच्चा नहीं बनना। दुनिया घबराये और आप खुशी में, मौज में घबराने वालों को भी शक्ति दो। सदा सामने मौत को देखते हुए बाप ही याद आता है ना। तो और ही याद में रहने का वातावरण मिला हुआ है। वैसे भी कहा जाता है कि मृत्यु के समय कौन याद आता है? तो आपको भी अकाले मृत्यु का समाचार मिलता है। मृत्युलोक को देख अपना स्वर्ग अर्थात् अमर लोक याद आता है। आज मृत्युलोक है, कल हमारा राज्य होगा! यह खुशी है ना। आज को देख कल की याद और ही ज्यादा आती है। तो सभी निर्भय रहने वाले हो ना। अच्छा!

ग्रुप नं. 2

डबल हीरो हैं-इस पोजीशन की स्मृति से हर कर्म श्रेष्ठ होगा

सभी अपने को इस ड्रामा के अन्दर पार्ट बजाने वाली श्रेष्ठ पार्टधारी आत्मायें अनुभव करते हो? जैसे बाप ऊंचे ते ऊंचा है, ऐसे ऊंचे ते ऊंचा पार्ट बजाने वाली आप श्रेष्ठ आत्माए हो। डबल हीरो हो। हीरे तुल्य जीवन भी है और हीरो पार्टधारी भी हो। तो कितना नशा हर कर्म में होना चाहिए! अगर स्मृति में यह श्रेष्ठ पार्ट है, तो जैसी स्मृति होती है वैसी स्थिति होती है और जैसी स्थिति होगी वैसे कर्म होंगे। तो सदा यह स्मृति रहती है? जैसे शरीर रूप में जो भी हो, जैसा भी हो-वह सदा याद रहता है ना। तो आत्मा का ऑक्यूपेशन, आत्मा का स्वरूप जो है, जैसा है-वह भी याद रहना चाहिए ना। शरीर विनाशी है लेकिन उसकी याद अविनाशी रहती है। आत्मा अविनाशी है, तो उसकी याद भी अविनाशी रहती है? जैसे यह आदत पड़ गई है कि मैं शरीर हूँ। है उल्टा, रांग है। लेकिन आदत तो पक्की हो गई। तो भूलने चाहते भी नहीं भूलता। वैसे यथार्थ अपना स्वरूप भी ऐसे पक्का होना चाहिए। शरीर का ऑक्यूपेशन स्वप्न में भी याद रहता है। कोई क्लर्क है, कोई वकील है, बिजनेस करने वाला है-तो भूलता नहीं। ऐसे यह ब्राह्मण जीवन का ऑक्यूपेशन कि मैं हीरो पार्टधारी हूँ-यह पक्का होना चाहिए और नेचुरल होना चाहिए। तो चेक करो कि ऐसे नेचुरल जीवन है?

जो नेचुरल चीज होती है वह सदा होती है और जो अननेचुरल (Unnatural;अस्वाभाविक) होती है वह कभी-कभी होती है। तो यह स्मृति सदा रहनी चाहिये कि हम डबल हीरो हैं। इस नशे में नुकसान नहीं है, दूसरे नशे में नुकसान है। यह हद का नशा नहीं है, बेहद का रूहानी नशा है। उस नशे में भी सब बातें स्वत: ही भूल जाती हैं, भूलनी नहीं पड़ती हैं। यह रूहानी नशा जब होता है तो हद की बातें भूल जाती हैं, भूलने की मेहनत नहीं करनी पड़ती है। जब यह स्मृति रहती है कि मैं हीरो पार्टधारी आत्मा हूँ-तो स्वत: ही हर कर्म श्रेष्ठ होता है। हर कर्म से सभी को अनुभव होगा कि यह कोई विशेष आत्मा है, साधारण नहीं। ऐसे समझते हो? वा जैसे सब हैं वैसे हम हैं? न्यारे लगते हो? चाहे कितने भी अज्ञानी हों लेकिन अनेक अज्ञानियों के बीच आप ‘ज्ञानी आत्मा’ प्यारी अनुभव हो। इसको कहा जाता है हीरो पार्टधारी। ऐसे है? दूसरे भी अनुभव करें। ऐसे नहीं-सिर्फ अपने को समझें। अन्दर से समझें कि ये न्यारे हैं। न चाहते हुए भी सभी आपके आगे अपना सिर झुकायेंगे। अभिमान का सिर झुकेगा। परन्तु इतनी पक्की अवस्था चाहिए। चेक करो और चेंज करो। हर कर्म में अपने को चेक करो कि-न्यारी हूँ, प्यारी हूँ? डबल हीरो स्थिति का अनुभव बढ़ाते चलो। एक-दो से आगे बढ़ना है और एक-दो को आगे बढ़ाना है। ऐसे नहीं समझो कि दूसरा आगे जायेगा तो मैं पीछे हो जाऊंगा। नहीं, बढ़ाना ही बढ़ना है। ब्राह्मण जीवन अर्थात् बढ़ना और बढ़ाना।

ग्रुप नं. 3

श्रेष्ठ भाग्य के स्मृतिस्वरूप बनो तो दु:ख की लहर आ नहीं सकती

सदा अपने श्रेष्ठ भाग्य को देख भाग्यविधाता बाप स्वत: ही याद आता है ना। भाग्यविधाता और भाग्य-दोनों याद रहते हैं ना। क्या-क्या भाग्य मिला है-उसकी स्मृति सदा इमर्ज रूप में रहे। ऐसे नहीं कि अन्दर में तो याद है। नहीं, बाहर दिखाई दे। क्योंकि सारे कल्प में ऐसा श्रेष्ठ भाग्य कभी भी मिल नहीं सकता। सतयुग के भाग्य और इस समय के भाग्य में क्या अन्तर है? अभी का भाग्य श्रेष्ठ है ना। क्योंकि इस समय हीरे तुल्य हो और सतयुग में सोने तुल्य हो जायेंगे। तो सदा दिल में श्रेष्ठ भाग्य के गीत गाते रहते हो। आटोमेटिक बजता है या कभी बन्द हो जाता है? सदा बजता है या कभी-कभी खराब हो जाता है? क्योंकि अविनाशी प्राप्ति कराने वाला भाग्यविधाता है। जो भाग्य मिला है उसकी अगर लिस्ट निकालो तो कितनी लम्बी लिस्ट हो जायेगी! लम्बी लिस्ट है ना। इसलिए कहा ही जाता है-कितना मिला, क्या मिला? तो कहते हैं-अप्राप्त कोई वस्तु नहीं रही। इससे सिद्ध है कि सब-कुछ मिल गया। जो मिला है उसको सम्भालना आता है? या कभी-कभी कोई चोरी करके चला जाता है? माया चोरी तो करके नहीं जाती?

माताओं को कभी थोड़ी-सी भी दु:ख की लहर आती है? तो उस समय अपना भाग्य भूल जाता है ना। स्मृति में लाते हो, इससे सिद्ध है कि विस्मृति हुई। सदा स्मृतिस्वरूप रहो। दुनिया वाले भाग्य के पीछे भटक रहे हैं और आपको घर बैठे भाग्यविधाता बाप ने भाग्य दे दिया! कितना बड़ा परिवर्तन आ गया! कभी भी अपने को इस श्रेष्ठ भाग्य से अलग नहीं करो। मेरा भाग्य है, तो ‘मेरा’ कभी भूलता है क्या? बाप का दिया हुआ खज़ाना अपना है ना। इतनी श्रेष्ठ भाग्यवान आत्मायें बनती हो जो अभी तक भी आपके भाग्य की महिमा कितनी करते रहते हैं! ये कीर्तन क्या है? आपके प्राप्त हुए भाग्य की महिमा है। तो जब भी कोई देवी-देवताओं का कीर्तन सुनते हो तो क्या लगता है? समझते हो कि हमारी प्राप्तियों की महिमा कर रहे हैं! चैतन्य में अपने जड़ चित्र की महिमा सुन रहे हो। सबसे ज्यादा खुशी किसको है? कोई को कम नहीं है! नम्बरवार तो होंगे ना। सभी नम्बरवन हो? विघ्नजीत में नम्बर-वन कौन है? कोई भी विघ्न आवे लेकिन उसको विनाश करने में नम्बरवन कौन है? कितना टाइम लगता है? एक दिन लगाया वा एक घण्टा लगाया? नम्बरवन अर्थात् कोई भी विघ्न आने के पहले ही मालूम पड़ जाये। अच्छा!

ग्रुप नं. 4

विघ्न-विनाशक बनने के लिये सर्व शक्तियों से सम्पन्न बनो

सभी अपने को बाप के हर कार्य में सदा साथी समझते हो? जो बाप का कार्य है वह हमारा कार्य है। बाप का कार्य है-पुरानी सृष्टि को नया बनाना, सबको सुख-शान्ति का अनुभव कराना। यही बाप का कार्य है। तो जो बाप का कार्य है वह बच्चों का कार्य है। तो अपने को सदा बाप के हर कार्य में साथी समझने से सहज ही बाप याद आता है। कार्य को याद करने से कार्य-कर्ता की याद स्वत: ही आती है। इसी को ही कहा जाता है सहज याद। तो सदा याद रहती है या करना पड़ता है? जब कोई माया का विघ्न आता है फिर याद करना पड़ता है। वैसे देखो, आपका यादगार है विघ्न-विनाशक। गणेश को क्या कहते हैं? विघ्न- विनाशक। तो विघ्न-विनाशक बन गये कि नहीं? विघ्न-विनाशक अर्थात् सारे विश्व के विघ्न-विनाशक। अपने ही विघ्न-विनाशक नहीं। अपने में ही लगे रहे तो विश्व का कब करेंगे? तो सारे विश्व के विघ्न-विनाशक हो। इतना नशा है? कि अपने ही विघ्नों के भाग-दौड़ में लगे रहते हो?

विघ्न-विनाशक वही बन सकता है जो सदा सर्व शक्तियों से सम्पन्न होगा। कोई भी विघ्न विनाश करने के लिए क्या आवश्यकता है? शक्तियों की ना। अगर कोई शक्ति नहीं होगी तो विघ्न विनाश नहीं कर सकते। इसलिए सदा स्मृति रखो कि बाप के सदा साथी हैं और विश्व के विघ्न-विनाशक हैं। विघ्न-विनाशक के आगे कोई भी विघ्न आ नहीं सकता। अगर अपने पास ही आता रहेगा तो दूसरे का क्या विनाश करेंगे। सर्व शक्तियों का खज़ाना है? या थोड़ा-थोड़ा है? कोई भी खज़ाना अगर कम होगा तो समय पर विजय प्राप्त नहीं कर सकेंगे। तो सदा अपना स्टॉक चेक करो कि सर्व खज़ाने हैं, सर्व शक्तियाँ हैं? क्योंकि बाप ने सभी को सर्व शक्तियाँ दी हैं। या किसको कम दी हैं, किसको ज्यादा दी हैं? सबको सर्व शक्तियाँ दी हैं ना। और अपने को कहलाते भी हो-मास्टर सर्वशक्तिवान। तो सर्व शक्तियाँ मेरा वर्सा है। तो वर्सा कभी जा नहीं सकता। वर्से का नशा रहता है ना। अगर किसी को बहुत बड़ा वर्सा मिल जाये तो कितना नशा, कितनी खुशी रहती है! आपको तो अविनाशी वर्सा मिला है। तो नशा भी अवि-नाशी होना चाहिए। तो सदा नशा रहता है? बालक अर्थात् मालिक।

बापदादा बच्चों के सेवा की वृद्धि को देख खुश होते हैं। क्वान्टिटी और क्वालिटी-दोनों हैं ना। दोनों की सेवा का बैलेन्स है? या क्वान्टिटी ज्यादा है, क्वालिटी कम है? बाप को तो क्वान्टिटी भी चाहिए, क्वालिटी भी चाहिए। क्वालिटी की सेवा प्रति किसलिए कहते हैं? क्योंकि एक क्वालिटी वाला अनेक क्वान्टिटी को लायेगा। फिर भी बाप को प्रिय तो आजकल के हिसाब से साधारण आत्मायें ही हैं। वैसे तो विशेष हैं लेकिन आजकल के जमाने के हिसाब से साधारण गिने जाते हैं। यही कमाल है जो साधारण आत्मायें अति श्रेष्ठ बन गयीं! जिन्हों के लिए कोई सोच भी नहीं सकता कि ये आत्मायें इतने वर्से के अधिकारी बनेंगी! दुनिया सोचती रहती और आप बन गये! वो तो ढूँढते रहते-किस वेष में आयेंगे, कब आयेंगे? और आप क्या कहते? पा लिया। तो ‘पा लिया’ की खुशी है ना।

सबसे बड़ा खज़ाना है ही खुशी। अगर खुशी है तो सब-कुछ है और खुशी नहीं तो कुछ भी नहीं। तो मातायें सदा खुश रहती हो? या कभी-कभी मन में रोती भी हो? पाण्डव रोते हैं? आंखों से नहीं रोते, मन से रोते हो? उदास होते हो? कभी-कभी धन्धेधोरी में नुकसान हो जाये तो उदास होते हो ना। तो यह उदास होना भी मन का रोना है। उदास होगा तो हंसी नहीं आयेगी, माना खुशी गायब हो गई ना। अभी उदास भी नहीं हो सकते। क्योंकि प्राप्तियों के आगे ये थोड़ा-बहुत कुछ नुकसान होता भी है तो अखुट प्राप्तियों के आगे यह क्या बड़ी बात है! जब प्राप्तियों को भूल जाते हैं तो उदास होते हैं। कुछ भी हो जाये लेकिन कभी भी बाप का खज़ाना गंवाना नहीं। ‘खुशी’ है बाप का खज़ाना, उसको छोड़ना नहीं है। पहले भी सुनाया था ना कि शरीर चला जाये लेकिन खुशी नहीं जाये। इतना पक्का बनना ही ब्राह्मण जीवन है। समझा? उदासी को तलाक दे दो। तलाक देने वाले को साथ नहीं रखा जाता है। तलाक दे दिया तो खत्म हुआ।

पीस पार्क में आयोजित शान्ति-मेले में सेवा के निमित्त सेवाधारियों प्रति

सेवा में तो अच्छी हिम्मत रखने वाले हैं। मेला अच्छा लगाया है। अनेक आत्माओं को सहज शान्ति का अनुभव कराना-यह कितना पुण्य का कार्य है! तो पुण्यात्मा बन पुण्य की पूंजी सेवा द्वारा जमा कर रहे हैं। अच्छी प्यार से सेवा कर रहे हैं। यह सेवा भी खुशी को बढ़ाती है। तो पहले स्वयं को अनुभवी बनाते हैं, फिर दूसरे को अनुभव कराते हैं। भाग्य बनाने का गोल्डन चान्स मिला है। अच्छा है, सहज साधन भी है और सिम्पल भी है। अच्छा! गुजरात के यूथ निर्विघ्न हैं? या थोड़ा-थोड़ा विघ्न है? ‘‘सी (See;देखना) फादर’’ करने से सदा निर्विघ्न रहेंगे। ‘‘सी सिस्टर’’, ‘‘सी ब्रदर’’ करने से कोई न कोई हलचल होती है। सदा ‘‘सी फादर’’। ब्रह्मा बाप ने क्या किया? अच्छा! मातायें तो नाचती रहती हैं। गरबा भी खूब करती हैं और खुशी में नाचती रहती हैं। गरबा करते हैं तो मिलन होता है ना एक-दो से। जो भी डांस करते हैं, तो एक-दो से मिलाते हैं ना। एक हाथ ऊपर करे, दूसरा नीचे करे-तो अच्छा लगेगा? ऐसे संस्कार मिलाने का गरबा करना है। समझा? यह गरबा तो अज्ञानी भी करते हैं। लेकिन ज्ञानियों को कौनसा गरबा करना है? संस्कार मिलाने का। सबके संस्कार बाप समान हों। यह संस्कार मिलाने की डांस आती है? या कभी आती है, कभी नहीं आती है? तो अब यह विशेषता दिखानी है। संस्कार से टक्कर नहीं खाना है, संस्कार मिलाना है। यदि कोई दूसरा गड़बड़ भी करे तो भी आप मिलाओ, आप गड़बड़ नहीं करो। और ही उसको शान्ति का सहयोग दो। तो समझा, विघ्न-विनाशक आत्मायें हो।

सदैव यह अनुभव करो कि हमारा ही यादगार विघ्न-विनाशक है। विघ्न-विनाशक बनने की विधि क्या है, कैसे विघ्न-विनाशक बनेंगे? शान्ति से या सामना करने से या थोड़ा हलचल करने से? शान्त रहना है और शान्ति से सर्व कार्य सम्पन्न करना है। ऐसे नहीं कहना कि थोड़ी हलचल करने से अटेन्शन खिंचवाते हैं। ऐसे नहीं करना। यह अटेन्शन नहीं खिंचवाते लेकिन टेन्शन पैदा करते हैं। इसलिए विघ्न-विनाशक बनना है तो शान्ति से, हलचल करने से नहीं। सदा शान्त। शान्ति की शक्ति-कितना भी बड़ा विघ्न हो, उसको सहज समाप्त कर देती है। तो शान्ति की शक्ति जमा है ना। अच्छा!

ग्रुप नं. 5

ब्राह्मण जीवन की सेफ्टी का साधन-बाप की छत्रछाया

अपने को हर समय हर कर्म करते बाप की छत्रछाया के अन्दर रहने वाले अनुभव करते हो? छत्रछाया सेफ्टी का साधन हो जाये। जैसे स्थूल दुनिया में धूप से वा बारिश से बचने के लिए छत्रछाया का आधार लेते हैं। तो वह तो है स्थूल छत्रछाया। यह है बाप की छत्रछाया जो आत्मा को हर समय सेफ रखती है-आत्मा कोई भी अल्पकाल की आकर्षण में आकर्षित नहीं होती, सेफ रहती है। तो ऐसे अपने को सदा छत्रछाया में रहने वाली सेफ आत्मा समझते हो? सेफ हो या थोड़ा-थोड़ा सेक आ जाता है? जरा भी इस साकारी दुनिया का माया के प्रभाव का सेंक-मात्र भी नहीं आये। क्योंकि बाप ने ऐसा साधन दिया है जो सेक से बच सकते हो। वह सबसे सहज साधन है-छत्रछाया। सेकेण्ड भी नहीं लगता, बाबा कहा और सेफ! मुख से नहीं, मुख से बाबा-बाबा कहे और प्रभाव में खिंचता जाये-ऐसा कहना नहीं। मन से बाबा कहा और सेफ। तो ऐसे सेफ हो? क्योंकि आजकल की दुनिया में सभी सेफ्टी का रास्ता ढूँढते हैं। कोई भी बात करेंगे तो पहले सेफ्टी सोचेंगे, फिर करेंगे। तो आजकल सेफ्टी सब चाहते हैं-चाहे स्थूल, चाहे सूक्ष्म। तो बाप ने भी सदा ब्राह्मण जीवन की सेफ्टी का साधन दे दिया है। चाहे कैसी भी परिस्थिति आ जाये लेकिन आप सदा सेफ रह सकते हो। ऐसे सेफ हो या कभी हलचल में आ जाते हो? कितना सहज साधन दिया है! मेहनत नहीं करनी पड़ी।

मार्ग मेहनत का नहीं है लेकिन अपनी कमजोरी मेहनत का अनुभव कराती है। जब कमजोर हो जाते हो तब मेहनत लगती है, जब शक्तिशाली होते हो तो सहज लगता है। है सहज लेकिन स्वयं ही मेहनत का अनुभव कराने के निमित्त बनते हो। मेहनत में थकावट होती है और सहज में खुशी होती है। अगर कोई भी कार्य सहज सफल होता रहता है तो खुशी होगी ना। मेहनत करनी पड़ी तो थकावट होगी। तो खुशी अच्छी या थकावट अच्छी? बापदादा सदैव बच्चों को यही कहते हैं कि आधा कल्प मेहनत की, अभी भी मेहनत नहीं करो, अभी मौज मनाओ। मौज के समय भी मेहनत करें तो मौज कब मनायेंगे? अभी नहीं तो कभी नहीं मनायेंगे। इसलिए सदा सहज अर्थात् सदा मौज में रहने वाले। तो सदा छत्रछाया में रहते हो। या बाहर निकलकर देखने में मजा आता है? कई अच्छे स्थान पर बैठे भी होंगे, लेकिन आदत होती है देखने की तो अच्छा स्थान छोड़कर भी देखते रहेंगे, बाहर चक्कर लगाते रहेंगे। तो ऐसी आदत तो नहीं है? छत्रछाया के अन्दर रहने की मौज का अनुभव करो। यह क्या है, यह क्यों है, यह कैसा है-ये छत्रछाया के अन्दर से निकलकर चक्कर लगाना है। यह छत्रछाया सदा श्रेष्ठ सेफ रहने की लकीर है। लकीर से बाहर जाने से ‘शोक वाटिका’ मिलती है और लकीर के अन्दर रहने से ‘अशोक वाटिका’। कोई शोक है क्या? कभी-कभी दु:ख की लहर आती है? किसी भी बात में थोड़ा-सा भी, संकल्प में भी अगर दु:ख की लहर आई तो ‘शोक वाटिका’ में हैं। संगमयुग में बाप ‘अशोक वाटिका’ में रहने का साधन बताते हैं और इस समय के अभ्यास से अनेक जन्म अशोक रहेंगे, शोक का नाम-निशान भी नहीं होगा। तो सदा सेफ रहने वाली श्रेष्ठ आत्मायें हैं-यह अनुभव करते चलो। समर्थ बाप, समर्थ बच्चे। तो छत्रछाया पसन्द है ना। अच्छा!

ग्रुप नं. 6

परमात्म-प्यार के पात्र बनो तो सहज मायाजीत बन जायेंगे

सभी अपने को परमात्म-शमा के परवाने समझते हो? परवाने दो प्रकार के होते हैं-एक हैं चक्र लगाने वाले और दूसरे हैं-सेकेण्ड में फिदा होने वाले। तो आप सभी कौनसे परवाने हो? फिदा हो गये हो या होने वाले हो? या अभी थोड़ा सोच रहे हो? सोचना अर्थात् चक्र लगाना। फिदा होने के बाद फिर चक्र नहीं काटना पड़ेगा। सभी हो गये? जब कोई अच्छी चीज मिल जाती है और समझ में आता है कि इससे अच्छी चीज कोई है ही नहीं-तो सोचने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे ही सौदा किया है ना। बापदादा को भी ऐसे निश्चयबुद्धि विजयी रत्नों को देख हर्ष होता है। ज्यादा खुशी किसको होती है-बाप को या आपको? बाप कहते हैं-बच्चों को ज्यादा खुशी है तो बाप को पहले है। बापदादा ने, देखो, कहाँ-कहाँ से चुनकर एक बगीचे के रूहानी गुलाब बना दिया। इसी एक परिवार का बनने में कितनी खुशी है! इतना परिवार किसी का भी होगा? फॉलोअर्स हो सकते हैं लेकिन परिवार नहीं। कितनी खुशियां हैं-बाप की खुशी, अपने भाग्य की खुशी, परिवार की खुशी! खुशियाँ ही खुशियाँ हैं ना। आंख खुलते ही अमृतवेले खुशी के झूले में झूलते हो और सोते हो तो भी खुशी के झूले में। अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो किससे पूछें? हर एक कहेगा-मेरे से पूछो। यह शुद्ध नशा है, यह देह-भान का नशा नहीं है। हर एक आत्मा को अपना-अपना रूहानी नशा है। सिर्फ रूहानी नशे को हद का नशा नहीं बनाना।

बापदादा का सबसे ज्यादा प्यार बच्चों से है, उसकी निशानी क्या है? कोई प्रैक्टिकल निशानी सुनाओ। (सभी ने सुनाया) देखो, हर रोज़ इतना बड़ा पत्र (मुरली) कोई नहीं लिखता है। ऐसा प्यार कोई नहीं करेगा। परमात्म-प्यार के पात्र हो। कभी भी एक दिन पत्र मिस हुआ है? ऐसा माशूक सारे कल्प में नहीं हो सकता है। यह सब बातें जो सुनाई वह याद रखना। हर समय यही प्राप्तियां याद रहें तो कभी भी प्राप्ति के आगे और कोई भी व्यक्ति या वस्तु आकर्षित नहीं कर सकते और सदा सहज मायाजीत बन औरों को भी बनायेंगे। अच्छा!